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आप सभी को भारतीय स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…………..
अब एक औपचारिकता तो करनी ही है सोशल साइट्स पे स्टेटस अपडेट करके , प्रोफाइल पिक या कवर पेज पे तिरंगा लगा के , आखिर हमें भी तो लाइक्स चाहिए न देशभक्त के नाम पे हमने इतना बड़ा काम जो किया ……. चलो सही है मुबारक हमे एक दिन की देशभक्ति …..अच्छा एक बात नही समझ आई कि हम आज़ादी का जश्न इसीलिए मना रहे कि अँगरेज़ छोड़ के गये पर कमबख्त ये इंग्लिश लव छूटे नहीं छूटता …… हम शुभकामनाएं भी दे रहे हैं तो अंग्रेजी में अरे यारा एक दिन को तो अपनी भारत माँ की भाषा से प्यार कर लो ……. मॉडर्न कल से ही बन जाना ……
बस इसी बात से कभी कभी ह्रदय बड़ा व्यथित हो जाता है कि भारत का जवां खून जो कल के भारत की नींव है वो भारत माँ से इतनी रूठी सी क्यों ये हमारे संस्कारों की कमी या फिर हम ही इस भारत माँ के लायक नही ….
परन्तु वास्तव में हमारी देशभक्ति सिमट के रह गयी है हमारी बातों में, हमारे अपडेट में, हमारे सोशल साइट्स के प्यार में … जेहन से तो जैसे वो ऐसे गायब हो गयी जैसे कुछ मतलब ही न हो कुछ वास्ता ही न हो बिलकुल वैसे ही जैसे मेट्रो शहरों में एक पडोसी का दूसरे से नाता ….. अरे मेरे भारत मां के सपूतो पूछना है देशभक्ति तो उस माँ से पूछो जिसने अपने इकलोते बेटे को सीमा पे भेज दिया …. पूछना है देशभक्ति का मतलब तो उस बाप से पूछो जिसने हँसते हँसते अपने बेटे की अर्थी को कन्धा दिया हो भारत मां के लिए …. उन मेहंदी वाले हाथो से पूछो जिन्होंने मंगलसूत्र उतारे हों अपने क्योंकि उनका सुहाग रात ही दुश्मन की गोली को सीने पे खा गया मां की रक्षा के लिए …… पर ये सब बाते अब किताबो,अखबारों और फेसबुक,ट्विटर पर अच्छी लगती हैं ….
मैं किसी को उपदेश नही दे रहा मैं उपदेश देने वाला कौन होता हूँ … मैं तो बस आप सभी बुद्धिजीवियों के समक्ष एक प्रश्न रख रहा हूँ कि क्या हमारा ये देशप्रेम सही है ? क्या भारत माँ के लिए हमारी बस इतनी सी जिम्मेदारी है ?
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